प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूटान यात्रा दक्षिण एशिया में सिर्फ एक कूटनीतिक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि मानवीय भावनाओं, परस्पर श्रद्धा और साझा भविष्य की कहानी भी है। मोदी के चेहरे पर मुस्कान, भूटान नरेश के साथ आत्मीय मुलाकात, रंग-बिरंगे उत्सव में भागीदारी—इन सबने दो देशों के संबंधों को इंसानी रंग दिए। जब प्रधानमंत्री ने कहा कि “भूटान के लोगों के साथ महामहिम चतुर्थ नरेश की 70वीं जयंती मनाना मेरे लिए सम्मान की बात है,” तो इसमें रिश्तों की गर्मजोशी साफ झलकती है।
यात्रा के दौरान मोदी ने न सिर्फ राजकीय समारोहों में हिस्सा लिया, बल्कि सरल शब्दों में दोस्ती की बात भी की। उन्होंने भूटान के चौथे राजा की जयंती पर कहा कि ये आयोजन हमारे संबंधों को और गहरा करेगा, साझा प्रगति और समृद्धि की दिशा में हमारी कोशिशों को मजबूत करेगा। प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में आत्मीयता थी—जब वे शाही परिवार, भूटान के प्रधानमंत्री और आम नागरिकों से बेतकल्लुफी से मिले तो लोगों ने महसूस किया कि मित्रता सिर्फ करारों या समझौतों पर नहीं टिकती, बल्कि आम लोगों की खुशियों, संस्कारों और भावनाओं से भी बनती है।
इस दौरे के दौरान जिन खास मौकों को पल-पल जीवंत बनाया गया, उनमें सबसे अहम था नेपाल के महामहिम चौथे नरेश का 70वां जन्मदिन समारोह। प्रधानमंत्री ने सादगी और सम्मान के साथ समारोह में शिरकत की, धोती-कुर्ते में, हाथ जोड़कर भूटानी जनता के सामने झुके, तो यह औपचारिकता को पार कर सीधा दिल छूता है। सोशल मीडिया पर मोदी ने भूटान रवाना होने से पहले लिखा, “यह यात्रा हमारी दोस्ती के रिश्ते को और मजबूत करेगी,” जो जताता है कि यह यात्रा उनके लिए भी निजी और भावनात्मक महत्व रखती थी।
कई बार राजनयिक यात्राओं में सिर्फ समझौतों, परियोजनाओं और आधिकारिक संवादों की बात होती है, लेकिन यहां मोदी का व्यवहार अलग था। उन्होंने ताशिछोद्ज़ोंग में भगवान बुद्ध के पिपरहवा अवशेषों के सामने प्रार्थना की, वे वैश्विक शांति प्रार्थना उत्सव में शामिल हुए और भूटान की जनता से सीधा जुड़कर सांस्कृतिक साझा विरासत का सम्मान किया। उन्होंने कहा कि भारत और भूटान के बीच रिश्ता गहरे नदी की तरह है, जिसमें महज दोनों देशों की सरकारें नहीं, बल्कि लोगों का विश्वास, भावनाएं और ऐतिहासिक सांस्कृतिक जुड़ाव शामिल हैं।
सहयोग की बात करें तो ऊर्जा साझेदारी जैसे बड़े प्रोजेक्ट में भी इंसानी दृष्टि दिखाई दी। पुनात्सांगछू-II जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन किया गया, जिसका सीधा लाभ भूटान की जनता को मिलेगा। मोदी ने इसे “सफल ऊर्जा साझेदारी” कहते हुए न सिर्फ प्रगति की बात रखी, बल्कि इस कामयाबी को दोनों देशों की टीम-वर्क और दोस्तों की तरह सहयोग का परिणाम बताया। जब उन्होंने भूटान को सहायता राशि देने का एलान किया, तो उसमें भी मित्र देश की चिंता का भाव नजर आया—यह मदद सिर्फ आर्थिक नहीं थी, बल्कि दो पड़ोसियों के सच्चे साथीपन की मिसाल थी।
राजनीतिक संदेश भी मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा रहा। प्रधानमंत्री ने भारी मन से बताया कि दिल्ली में हुए धमाके की वजह से उनका मन दुखी है, और उन्होंने भूटान की धरती से भारत के नागरिकों के लिए सांत्वना जताई। यह दर्शाता है कि नेतृत्व का दायित्व सिर्फ औपचारिक संदेश देने का नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाएं साझा करने का भी है—देश-दुनिया के हालात में, नेताओं के व्यक्तिगत भाव भी मैत्री के बंधनों को मजबूत करते हैं।
यात्रा के दूसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी ने भूटान के पीएम से मुलाकात कर ऊर्जा, रेल और विकास परियोजनाओं को लेकर खुलकर चर्चा की। पर यह वार्ता रिश्तों के तकनीकी पक्ष के इर्द-गिर्द ही नहीं घूमी, उसमें भविष्य की उम्मीद, साझा योजनाओं और आम आदमी के जीवन में सुधार की चाह प्रकट हुई। भारत और भूटान ने सीमाओं के परे, दिलों की दोस्ती का संकल्प लिया।
इस प्रकार प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा कूटनीति से कहीं आगे बढ़कर इंसानियत, सहभागिता और विश्वास का उत्सव बनी। हर औपचारिक निर्णय, हर समझौता और हर मुलाकात के पीछे इंसानी कहानी थी—रिश्ते गहरे हुए, दोस्ती मुस्कराई और दोनों देशों के नागरिकों को यह आभास हुआ कि ऊँचे पदों पर बैठे नेता भी दिल से सोचते हैं, दिल से मिलते हैं और दिल से फैसले लेते हैं।


Social Plugin