ब्लड कैंसर कितना घातक और क्या है इसका इलाज? फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम ने साइक्लोथॉन के जरिए लोगों को किया जागरूक

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ब्लड कैंसर कितना घातक और क्या है इसका इलाज? फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम ने साइक्लोथॉन के जरिए लोगों को किया जागरूक

ब्लड कैंसर कितना घातक और क्या है इसका इलाज? फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम ने साइक्लोथॉन के जरिए लोगों को किया जागरूक

हिसार, 9 जून 2023: ब्लड कैंसर और इसके इलाज के बारे में लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम ने आज एक साइक्लोथॉन का आयोजन किया. ये साइक्लोथॉन हिसार रोडीज-द साइकिलिंग क्लब के साथ पार्टनरशिप में किया गया. 

इस साइक्लोथॉन का उद्देश्य 'थैलेसीमिया एंड ब्लड कैंसर फ्री हरियाणा' थी. साइक्लोथॉन को हिसार के मिडटाउन ग्रैंड होटल से सुबह 6 बजे हरी झंडी दिखाई गई. यहां बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे हिसार के मेयर गौतम सरदाना ने साइक्लोथॉन को रवाना किया. उनके साथ यहां एसडीएम हिसार जयवीर यादव, डिप्टी सिविल सर्जन वेक्टर बोर्न डिजीज-कोविड एंड नॉन कम्युनिकेबल डिजीज  डॉक्टर सुभाष खतरेजा और ब्लड बैंक हिसार में सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर सुशील गर्ग, डिप्टी सिविल सर्जन-इम्यूनाइजेशन-एनएचएम डॉक्टर तरुण कुमार और थैलेसीमिया सोसाइटी हिसार के अध्यक्ष वेद प्रकाश झंडई इस कार्यक्रम में गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में शामिल हुए. 

ये इवेंट फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम द्वारा आयोजित किया गया जिसे हिसार रोडीज के सदस्य डॉक्टर अरुण अग्रवाल ने सहयोग प्रदान किया.

फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम में हेमेटोलॉजी एंड बीएमटी विभाग के एडिशनल डायरेक्टर डॉक्टर मीत कुमार ने कहा, ''ब्लड कैंसर कैंसर के सबसे घातक रूपों में से एक है जो जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. ऐसे में लोगों को ये बताना जरूरी है कि इससे जुड़ी बीमारियों को बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है. खून से जुड़ी बीमारियां जैसे एक्यूट ल्यूकेमिया, मल्टीपल मायलोमा, एप्लास्टिक एनीमिया, थैलेसीमिया मेजर, सिकल सेल डिजीज और अन्य कैंसर जिन्हें पहले जानलेवा माना जाता था, उन्हें अब नई तकनीक की मदद से ठीक किया जा सकता है. जब कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी जैसे तरीके फेल हो जाते हैं तब  बोन मैरो ट्रांसप्लांट से सफल किया जा सकता है.''

भारत में, हर साल लगभग 2,500 से 3,000 बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किए जाते हैं. हालांकि, बीएमटी की मांग इससे कहीं ज्यादा है. बड़ी वजह ये भी है कि जागरूकता की कमी है, पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है और कुशल डॉक्टरों की भी कमी है. ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, प्रतिरक्षा की कमी, अप्लास्टिक एनीमिया,ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, ब्रेन ट्यूमर, न्यूरोब्लास्टोमा और सारकोमा जैसी बीमारियों में भी बीएमटी को एक सफल ट्रीटमेंट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

डॉक्टर मीत कुमार ने इस बारे में आगे बताया, ''हेमेटोलॉजी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन में प्रगति के साथ, बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) लाइलाज मरीजों के लिए भी एक उम्मीद की किरण बन गया है. बोन मैरो के जरिए ही रक्त कोशिकाओं का उत्पादन होता है और बीएमटी में डैमेज बोन मैरो को स्वस्थ कोशिकाओं से बदल दिया जाता है. ये प्रक्रिया दो हिस्सों में होती है- एलोजेनिक, इसमें डोनर का टिशू मैच होना जरूरी होता है. दूसरी प्रक्रिया है ऑटोलोगस, इसमें मरीज की अपनी बॉडी से स्टेम सेल्स लिए जाते हैं. हालिया एडवांसमेंट ने हैप्लोइडेंटिकल ट्रांसप्लांटेशन को संभव बना दिया है. अगर डोनर का टिशू सिर्फ 50% भी मैच हो तो इसमें सफल ट्रांसप्लांटेशन हो जाता है. जिन मरीजों की बीएमटी तत्काल आवश्यकता होती है उनके लिए ये प्रक्रिया काफी लाभदायक साबित होती है.''

खून से जुड़ी जिन समस्याओं में बीएमटी की जरूरत पड़ती है उनमें थैलेसीमिक मरीज, जिन्हें छह महीने की उम्र से हर महीने ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता होती है. कमजोरी के साथ एप्लास्टिक एनीमिया वाले मरीज, थकावट, लगातार बुखार, या शरीर पर खून के धब्बे, और कमजोरी महसूस करने वाले ब्लड कैंसर के मरीज और ब्लीडिंग वाले मरीजों को बीएमटी की जरूरत होती है.

इस तरह की समस्याओं के प्रॉपर इलाज के लिए फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम में तमाम तरह की उन्नत सुविधाएं हैं. हिसार व आसपास के मरीज यहां आसानी से जा सकते हैं. यहां की ओपीडी हिसार व आसपास के क्षेत्र के लोगों के लिए दरवाजे पर वर्ल्ड क्लास इलाज मुहैया कराने वाली रही है.

इस सारे कार्यकर्म का प्रबंधन फॉर्टिस हॉस्पिटल गुड़गांव के मैनेजर मंजीत शर्मा के द्वारा किया गया।