पटना, 1 नवम्बर 2025: बिहार में नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि दर्ज करते हुए सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स ने अपने पटना सेंटर में राज्य की पहली और दूसरी iStent मिनिमली इनवेसिव ग्लॉकोमा सर्जरी (MIGS) सफलतापूर्वक की है। यह मील का पत्थर साबित होने वाली सर्जरी सेंटर फॉर साइट, पटना के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. प्रवीण, द्वारा की गई, जो राज्य में ग्लॉकोमा प्रबंधन के क्षेत्र में एक अहम प्रगति का प्रतीक है।
ग्लॉकोमा, जिसे “साइलेंट थीफ ऑफ साइट” यानी “दृष्टि का मौन चोर” भी कहा जाता है, विश्वभर में स्थायी अंधेपन के सबसे सामान्य कारणों में से एक है। यह समस्या तब होती है जब आंख के अंदर फ्लूइड जमा होने से इन्ट्राऑक्युलर प्रेशर बढ़ जाता है, जिससे धीरे-धीरे ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है। यह रोग आमतौर पर बिना किसी शुरुआती लक्षण के बढ़ता जाता है, इसलिए समय पर जांच कराना बेहद जरूरी होता है।
बिहार में पहली और दूसरी iStent इम्प्लांटेशन के बारे में अपने विचार साझा करते हुए सेंटर फॉर साइट, पटना के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. प्रवीण ने कहा, “पारंपरिक ग्लॉकोमा सर्जरी प्रभावी तो हैं, लेकिन वे जटिल होती हैं और रिकवरी में अधिक समय लगता है। मिनिमली इनवेसिव ग्लॉकोमा सर्जरी (MIGS) ने इस उपचार के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। इस सर्जरी में माइक्रोस्कोपिक उपकरणों और बेहद छोटे इम्प्लांट का उपयोग किया जाता है, जो इन्ट्राऑक्युलर प्रेशर को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करते हैं। इसमें सर्जन एक iStent (जो पलक के बाल जितना छोटा होता है) को आंख के भीतर स्थापित करते हैं, जिससे आंख के अंदर का फ्लूइड स्वाभाविक रूप से बाहर निकल सके और ऑप्टिक नर्व को आगे के नुकसान से बचाया जा सके। यह सर्जरी ग्लॉकोमा प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव है, और अब बिहार जैसे राज्यों में भी मरीजों को वही आधुनिक सुविधा मिलेगी जो मेट्रो शहरों में उपलब्ध है।”
डॉ. प्रवीण ने आगे कहा, “इन सफल सर्जरीज़ ने बिहार में एडवांस्ड ग्लॉकोमा इलाज की एक नई शुरुआत की है। अब मरीजों को ऐसे इलाज के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सेंटर फॉर साइट, पटना में MIGS के उपलब्ध होने से मरीज अपने ही शहर में अनुभवी नेत्र विशेषज्ञों के माध्यम से विश्वस्तरीय इलाज प्राप्त कर सकते हैं। यह सर्जरी बेहद सुरक्षित, कोमल और प्रभावी है। यह न केवल इन्ट्राऑक्युलर प्रेशर घटाती है बल्कि ग्लॉकोमा ड्रॉप्स पर निर्भरता भी कम करती है, जिससे मरीजों को काफी राहत मिलती है।”
डॉक्टर आमतौर पर MIGS की सिफारिश माइल्ड से मॉडरेट ग्लॉकोमा वाले मरीजों के लिए करते हैं। इसे अक्सर मोतियाबिंद सर्जरी के साथ भी किया जा सकता है। इसमें बहुत छोटे चीरे और आस पास के टिशूस से न्यूनतम छेड़छाड़ की जाती है, जिससे मरीज जल्दी और बिना जटिलताओं के ठीक हो जाते हैं। सेंटर फॉर साइट, पटना में iStent MIGS की सफल शुरुआत डॉक्टरों के उस निरंतर प्रयास को दर्शाती है, जो वैश्विक स्तर की नेत्र चिकित्सा तकनीकों को लोगों तक पहुंचाने के लिए समर्पित हैं।
सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. महिपाल सिंह सचदेव, जिन्होंने भारत में आधुनिक नेत्र चिकित्सा को नई दिशा दी है, उन्होंने कहा, “ग्लॉकोमा की जल्द पहचान बेहद जरूरी है, खासकर उन लोगों के लिए जिनको हाइपरटेंशन है या परिवार में इसका इतिहास है। जितनी जल्दी हम इन्ट्राऑक्युलर प्रेशर या ऑप्टिक नर्व में बदलाव पहचान लेते हैं, उतनी ही ज्यादा संभावना रहती है कि दृष्टि सुरक्षित रखी जा सके। सेंटर फॉर साइट में हमारा विश्वास है कि हर आंख सर्वश्रेष्ठ देखभाल की हकदार है। MIGS की शुरुआत बिहार में इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।”
तीन दशकों से अधिक अनुभव और देशभर में मजबूत नेटवर्क के साथ सेंटर फॉर साइट अपने मिशन — “एडवांस्ड एथिकल और पेशेंट सेंट्रिक नेत्र चिकित्सा को सबके लिए सुलभ बनाना” — की दिशा में लगातार अग्रसर है। सेंटर फॉर साइट, पटना सलाह देता है कि जिन्हें दृष्टि में धुंधलापन, आंखों के दबाव में बदलाव या ग्लॉकोमा का पारिवारिक इतिहास है, वे समय पर आंखों की पूरी जांच जरूर करवाएं। ग्लॉकोमा से जूझ रहे कई मरीजों के लिए यह नई तकनीक साफ दृष्टि और बेहतर जीवन गुणवत्ता की दिशा में एक नई उम्मीद लेकर आई है।


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