गायनेकोलॉजिकल कैंसर के इलाज में गेम चेंजर साबित हो रही है रोबोटिक सर्जरी

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गायनेकोलॉजिकल कैंसर के इलाज में गेम चेंजर साबित हो रही है रोबोटिक सर्जरी

गायनेकोलॉजिकल कैंसर के इलाज में गेम चेंजर साबित हो रही है रोबोटिक सर्जरी

बरेली: रोबोटिक सर्जरी ने गायनेकोलॉजिकल कैंसर के इलाज में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया है। इस तकनीक ने मरीजों के लिए लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के फायदों को और सर्जनों के लिए ओपन सर्जरी की सुविधा को जोड़ते हुए अधिक प्रभावी, सुरक्षित और कम जटिलता वाले इलाज की राह खोली है।


पहले गर्भाशय (uterine) कैंसर के इलाज में नाभि से लेकर प्यूबिक बोन तक लंबा चीरा लगाया जाता था, जिससे रिकवरी में लंबा समय लगता था और हर्निया जैसी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता था। जबकि लैप्रोस्कोपी और रोबोटिक दोनों तकनीकें ‘की-होल सर्जरी’ हैं, जिनमें बहुत छोटे चीरे लगाए जाते हैं। फर्क यह है कि लैप्रोस्कोपिक उपकरण सीमित मूवमेंट वाले होते हैं, जबकि रोबोटिक इंस्ट्रूमेंट्स लचीले होते हैं और कठिन प्रक्रियाओं को भी आसानी से करने में मदद करते हैं।


मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, पटपड़गंज के रोबोटिक और लैप्रोस्कोपिक गायने-ऑन्कोलॉजी सर्जरी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. मोनिषा गुप्ता ने बताया कि “रोबोटिक सर्जरी में 40x ज़ूम कैमरा, सर्जन की बैठी हुई स्थिति, मोशन स्केलिंग मैकेनिज्म और सर्जन की कलाई को 7 दिशाओं में मूव करने की क्षमता जैसी खूबियाँ होती हैं। इसकी बदौलत मरीजों को बेहद सटीक सर्जरी, कम ब्लड लॉस, न्यूनतम दर्द, कम अस्पताल में रहने का समय और तेज़ रिकवरी जैसे अनेक लाभ मिलते हैं। इस तकनीक में सर्जन एक कंसोल पर बैठकर 3D व्यू में सर्जरी एरिया को देखते हैं और दो हैंडल्स से रोबोटिक आर्म्स को नियंत्रित करते हैं। ये आर्म्स मरीज के शरीर पर छोटे-छोटे 8 मिमी के चीरे के माध्यम से लगाए जाते हैं और इनमें लगे नन्हे इंस्ट्रूमेंट्स सर्जन के हाथों की मूवमेंट को सटीक रूप से दोहराते हैं, जिससे किसी भी तरह के कम्पन (tremor) को खत्म किया जा सके।“


कठिन गायनेकोलॉजिकल सर्जरी जैसे मायोमेक्टॉमी, एंडोमीट्रियोसिस या बड़े फाइब्रॉइड्स की सर्जरी, शुरुआती स्टेज के सर्वाइकल कैंसर के लिए रैडिकल हिस्टेरेक्टॉमी या एंडोमीट्रियल कैंसर में लिंफ नोड डिसेक्शन वाली सर्जरी में रोबोटिक तकनीक बेहद प्रभावी है। इसके अलावा प्रजनन क्षमता (fertility) बचाने वाली सर्जरी जैसे ट्रेकलेक्टॉमी, ओवेरियन सिस्टेक्टॉमी या ट्यूबल री-कैनलाइजेशन में यह माइक्रो-वेस्कुलर तकनीकों के लाभ प्रदान करती है।


डॉ. मोनिषा ने आगे बताया कि “मोटापे से ग्रस्त (BMI>35) और गंभीर रूप से मोटे (BMI>40) मरीजों के लिए यह तकनीक किसी वरदान से कम नहीं। ओपन सर्जरी के बाद ऐसे मरीजों में घाव की जटिलताएं और हर्निया का खतरा अधिक होता है, वहीं लैप्रोस्कोपी में भी लंबे समय तक सर्जरी चलने के कारण जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे में रोबोटिक सर्जरी की सटीकता और नियंत्रित मूवमेंट इन मरीजों के लिए बेहतर परिणाम देती है। हालांकि रोबोटिक सर्जरी की लागत पारंपरिक सर्जरी की तुलना में कुछ अधिक है, लेकिन कम अस्पताल प्रवास, दवाओं की कम आवश्यकता और तेज़ रिकवरी के कारण यह लंबे समय में अधिक लाभकारी साबित होती है। विभिन्न अध्ययनों ने यह भी सिद्ध किया है कि कैंसर के दीर्घकालिक परिणामों – जैसे जीवित रहने की दर और कैंसर की पुनरावृत्ति – पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।“


सफल परिणामों के लिए सही मरीज का चयन बेहद आवश्यक है। शुरुआती स्टेज के एंडोमीट्रियल और सर्वाइकल कैंसर वाली महिलाएं रोबोटिक सर्जरी से अधिकतम लाभ पा सकती हैं। वहीं, उन्नत कैंसर के मामलों में इसका उपयोग अभी भी अनुसंधान के अधीन है।


कहा जा सकता है कि योग्य मरीजों के लिए रोबोटिक सर्जरी आज ‘स्टैंडर्ड ऑफ केयर’ बन चुकी है और भविष्य में गायनेकोलॉजिकल कैंसर के सर्जिकल प्रबंधन को और अधिक सटीक, सुरक्षित और प्रभावी बनाने की दिशा में इसकी संभावनाएं अत्यधिक हैं।

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