महिलाओं में आजकल सबसे आम पाई जाने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिज़ीज़ (PCOD), जिसे पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) के नाम से भी जाना जाता है। विशेष रूप से 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में यह एक आम हार्मोनल असंतुलन है, जो मासिक धर्म की अनियमितता, बिल्कुल न होना या शरीर में पुरुष हार्मोन की अधिकता के कारण होता है। इस स्थिति में अंडाशय (ovaries) का आकार बड़ा हो सकता है और उनमें कई छोटे-छोटे सिस्ट विकसित हो सकते हैं, लेकिन कुछ मामलों में सिस्ट न होने के बावजूद भी यह बीमारी हो सकती है। इसलिए इसके लक्षण सभी महिलाओं में एक जैसे नहीं होते।
न्यूबेला सेंटर फॉर वुमन हेल्थ की फाउंडर डायरेक्टर डॉ. गीता श्रॉफ के अनुसार, इस बीमारी के कुछ प्रमुख लक्षणों में मासिक धर्म का असंतुलन, ओवुलेशन की समस्या, शरीर के कुछ हिस्सों पर अत्यधिक बाल, मुंहासे, पुरुषों जैसी गंजेपन की समस्या, डिंबोत्सर्जन (ovulation) की असफलता के कारण बांझपन, डिंबाशय में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का असंतुलन और इंसुलिन रेजिस्टेंस शामिल हैं। इस स्थिति में कुछ महिलाएं मोटापे का शिकार हो जाती हैं, जबकि कुछ सामान्य वजन की होती हैं लेकिन फिर भी हार्मोनल असंतुलन और अनियमितता का अनुभव करती हैं।
पीसीओडी से पीड़ित महिलाओं की प्रजनन क्षमता बढ़ाने और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए डॉ. गीता श्रॉफ कुछ महत्वपूर्ण सुझाव देती हैं। वे कहती हैं कि महिलाओं को रोज़ाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करना चाहिए और 7 से 8 घंटे की पर्याप्त नींद लेनी चाहिए, ताकि हार्मोन संतुलन बना रहे और वजन नियंत्रित रहे। डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं को समय पर लेना आवश्यक है, क्योंकि लापरवाही से उपचार प्रभावित हो सकता है।
साथ ही संतुलित आहार और शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से सही वजन बनाए रखना, मासिक धर्म चक्र पर नज़र रखना और किसी भी अनियमितता की जानकारी समय पर डॉक्टर को देना चाहिए। पीसीओडी की स्थिति में धूम्रपान और शराब का सेवन बंद करना जरूरी है, क्योंकि ये आदतें अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकती हैं। इसके अतिरिक्त, महिलाओं को डिप्रेशन के लक्षणों को पहचानने और जरूरत पड़ने पर मनोवैज्ञानिक सलाह लेने में भी हिचक नहीं करनी चाहिए।
डॉ. श्रॉफ कहती हैं कि पीसीओडी एक गंभीर चुनौती हो सकती है, लेकिन यदि इसका इलाज समय पर और अनुशासित तरीके से किया जाए और जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाया जाए, तो इससे प्रभावी रूप से निपटना संभव है। तनाव लेने की जरूरत नहीं है, बल्कि दृढ़ निश्चय और सही मार्गदर्शन से महिलाएं न सिर्फ पीसीओडी पर विजय पा सकती हैं, बल्कि अपनी प्रजनन क्षमता को भी बेहतर बना सकती हैं।
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