सीने में दर्द का मतलब सिर्फ हार्ट अटैक ही नहीं, इस्केमिक स्ट्रोक के भी हो सकते हैं संकेत

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सीने में दर्द का मतलब सिर्फ हार्ट अटैक ही नहीं, इस्केमिक स्ट्रोक के भी हो सकते हैं संकेत

सीने में दर्द का मतलब सिर्फ हार्ट अटैक ही नहीं, इस्केमिक स्ट्रोक के भी हो सकते हैं संकेत

गुरुग्राम : कई बार ये समझा जाता है कि सीने में दर्द होना, हार्ट अटैक के ही लक्षण होते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है, कई बार ये ब्रेन स्ट्रोक का भी कारण हो सकता है. इसी बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से आर्टेमिस अग्रिम इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेज गुरुग्राम ने आज एक जनजागरूकता सत्र आयोजित किया.

इस अवसर पर न्यूरो इंटरवेंशन के डायरेक्टर और स्ट्रोक यूनिट के को-डायरेक्टर डॉक्टर विपुल गुप्ता ने अपनी टीम के साथ मौजूद रहे और लोगों को ये समझाया कि हार्ट अटैक कैसे ब्रेन स्ट्रोक से अलग है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सीने में दर्द होना, इम्पेंडिंग इस्केमिक स्ट्रोक का भी लक्षण हो सकता है. ऐसे में लोगों को इन दोनों का फर्क समझने की जरूरत है ताकि वो उसी हिसाब से डॉक्टर की मदद ले सकें.


आर्टेमिस अग्रिम इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेज गुरुग्राम में न्यूरो इंटरवेंशन के डायरेक्टर और स्ट्रोक यूनिट के को-डायरेक्टर डॉक्टर विपुल गुप्ता ने कहा*, "ये एक बड़ी समस्या है और खासकर उम्रदराज लोगों के साथ ऐसा काफी देखा जाता है. जो लोग हाइपरटेंशन, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल से ग्रसित होते हैं वो आमतौर पर स्ट्रोक के लक्षणों को हार्ट अटैक के संकेत समझ लेते हैं. हार्ट अटैक के जो आम लक्षण और संकेत हैं उनके बारे लोगों को जानकारी होती ही है, लेकिन स्ट्रोक को वो कई बार नजरअंदाज कर देते हैं और वो पहले कार्डियोलॉजिस्ट के पास चले जाते हैं."

एक मुश्किल तब आती है, जब स्ट्रोक के मरीज अपना ब्लड प्रेशर हाई देखते हैं और अपनी हालत के लिए हाइपरटेंशन को जिम्मेदार समझते हैं. डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि स्ट्रोक के मरीजों में हाई ब्लड प्रेशर होना आम बात है, ये बस एक रिएक्शन भर है, बीमारी का मूल कारण नहीं होता है. ऐसे में सिर्फ ब्लड प्रेशर पर ही ध्यान न दें, बल्कि बंद रक्त वाहिका को देखें जिसके कारण स्ट्रोक होता है.


स्ट्रोक के लक्षणों की जल्दी पहचान कर स्ट्रोक सेंटर्स में इलाज कराना चाहिए. स्ट्रोक के लक्षण हार्ट अटैक से अलग होते हैं. स्ट्रोक के मरीजों को आमतौर पर शरीर के एक हिस्से में कमजोरी फील होती है, अचानक बोलने और समझने में परेशानी होने लगती है, जबान लड़खड़ाने लगती है, संतुलन बिगड़ जाता है, चलने में दिक्कत होती है, कॉर्डिनेशन डगमगा जाता है और यहां तक कि एक आंख की रोशनी जाने का भी खतरा रहता है.


डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि स्ट्रोक के मामलों में टाइम का रोल बहुत अहम होता है. स्ट्रोक के बाद हर एक मिनट में 2 मिलियन कोशिकाएं मर जाती हैं, ऐसे में इलाज में जरा भी देरी मरीज की स्थिति को बिगाड़ सकती है. अगर स्ट्रोक के बाद गोल्डन आवर्स में इलाज मिल जाए तो थ्रोम्बोलिसिस और मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी जैसी प्रक्रियाओं से मरीज के लिए अच्छे रिजल्ट लाए जा सकते हैं. थ्रोम्बोलिसिस में स्ट्रोक के चार से पांच घंटे के भीतर क्लॉट डिजॉल्व करने की दवाई दी जाती है. मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी ने पिछले एक दशक में काफी चर्चा पाई है. इसमें न्यूरो के एक्सपर्ट स्टेंट रिट्रीवर डिवाइस का इस्तेमाल कर ब्लॉक ब्रेन ब्लड वेसल्स से क्लॉट हटाते है और ब्लड फ्लो को नॉर्मल करते हैं.


स्ट्रोक के 20 फीसदी मामले दिल की समस्याओं के कारण होते हैं जिसमें एरिथमियास, हार्ट वाल्व डिजीज और पिछले हार्ट अटैक शामिल होते हैं. इस तरह की परेशानी वाले मरीज कई बार कार्डियोलॉजिस्ट को दिखाते हैं, जिससे न्यूरो का इलाज मिलने में देरी होने का रिस्क रहता है और फिर मरीज के लिए रिजल्ट उतने अच्छे नहीं आते. ऐसे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने वाले ये कदम काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं ताकि लोग स्ट्रोक और हार्ट के लक्षणों में अंतर को समझ सकें. स्ट्रोक के मामले में लक्षणों की जल्दी पहचान और उसका तुरंत इलाज, बेहतर रिजल्ट पाने के लिए सबसे अहम है.

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