एपिलेप्सी के मरीजों के लिए सर्जरी: जब दवाएं न हों कारगर, तब सर्जरी बन सकती है समाधान

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एपिलेप्सी के मरीजों के लिए सर्जरी: जब दवाएं न हों कारगर, तब सर्जरी बन सकती है समाधान

एपिलेप्सी के मरीजों के लिए सर्जरी: जब दवाएं न हों कारगर, तब सर्जरी बन सकती है समाधान

मुरादाबाद ( एपिलेप्सी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें बार-बार बिना किसी स्पष्ट कारण के दौरे पड़ते हैं। कई लोगों के लिए ये दौरे दवाओं से नियंत्रित किए जा सकते हैं, लेकिन कुछ मरीजों पर दवाओं का असर नहीं होता। जब एपिलेप्सी पर केवल दवाओं से नियंत्रण संभव नहीं हो पाता, तब एपिलेप्सी की सर्जरी एक विकल्प के रूप में सामने आती है। इस सर्जरी का उद्देश्य उस मस्तिष्क क्षेत्र को हटाना या बदलना होता है जहाँ से दौरे की शुरुआत होती है, ताकि दौरे कम या पूरी तरह समाप्त हो सकें। 

 

एपिलेप्सी सर्जरी के कई प्रकार होते हैं, जो इस बात पर निर्भर करते हैं कि दौरे किस हिस्से से शुरू हो रहे हैं और मरीज का समग्र स्वास्थ्य व दौरे का इतिहास क्या है। सबसे सामान्य प्रकार की सर्जरी रेसेक्टिव सर्जरी है, जिसमें मस्तिष्क के उस हिस्से को हटा दिया जाता है जो दौरे की शुरुआत करता है। उदाहरण के लिए, टेम्पोरल लोब एपिलेप्सी वाले मरीजों में टेम्पोरल लोब को हटाया जा सकता है। एक अन्य आधुनिक विकल्प है लेज़र एब्लेशन, जिसमें एक पतली लेज़र फाइबर को मस्तिष्क में डाला जाता है और उससे गर्मी देकर दौरे की शुरुआत वाले हिस्से को नष्ट किया जाता है। 

 

बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के न्यूरो सर्जरी और न्यूरो स्पाइन विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. रोहित बंसिल ने बताया कि “कुछ मामलों में, जब दौरे मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को प्रभावित करते हैं, तो कॉर्पस कैलोसोसटोमी की जाती है, जिसमें मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को जोड़ने वाले नर्वस स्ट्रकचर्स (कॉर्पस कैलोसम) को काट दिया जाता है ताकि दौरे का प्रसार रोका जा सके। गंभीर मामलों में, जहाँ मस्तिष्क का एक हिस्सा बेकार हो चुका हो और वहां से दौरे शुरू होते हों, वहाँ हेमीस्फेरेक्टॉमी की जाती है, जिसमें मस्तिष्क के एक पूरे हिस्से को हटा या निष्क्रिय कर दिया जाता है। जिन मरीजों के लिए रेसेक्टिव सर्जरी संभव नहीं होती, उनके लिए एक नवीन तकनीक है रेस्पॉन्सिव न्यूरोस्टिमुलेशन (RNS), जिसमें मस्तिष्क में एक उपकरण लगाया जाता है जो दौरे की गतिविधि पहचान कर उसे शुरू होने से पहले ही रोक देता है। 

 

हालांकि एपिलेप्सी के हर मरीज के लिए सर्जरी उपयुक्त नहीं होती। वे मरीज जो कई दवाएं आज़मा चुके हों और जिनके मस्तिष्क में दौरे की एक निश्चित और सीमित जगह हो, वे इसके लिए आदर्श उम्मीदवार माने जाते हैं। सर्जरी की उपयुक्तता का मूल्यांकन करने के लिए डॉक्टर MRI, PET स्कैन, EEG और फंक्शनल ब्रेन मैपिंग जैसी तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिससे यह तय किया जा सके कि कौन-से मस्तिष्क क्षेत्र महत्वपूर्ण कार्यों जैसे बोलने, याददाश्त या चलने से जुड़े हैं। 

 

डॉ. रोहित ने आगे बताया कि “एपिलेप्सी सर्जरी से मरीजों के जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। प्रमुख लाभ यह है कि इससे दौरे पूरी तरह बंद हो सकते हैं या उनकी तीव्रता और बारंबारता में स्पष्ट कमी आ सकती है। इससे मरीजों को अधिक स्वतंत्र जीवन जीने और पहले से वर्जित गतिविधियों में भाग लेने की क्षमता मिलती है। हालाँकि, किसी भी सर्जरी की तरह एपिलेप्सी सर्जरी से भी कुछ जोखिम जुड़े होते हैं, जैसे संक्रमण, रक्तस्राव या कुछ न्यूरोलॉजिकल समस्याएं जैसे कमज़ोरी या संज्ञानात्मक परिवर्तन। जोखिम का स्तर उस मस्तिष्क भाग पर निर्भर करता है जहाँ सर्जरी की जाती है। फिर भी, आधुनिक तकनीकों के कारण अब यह प्रक्रिया पहले की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित हो गई है। 

 

अंततः कहा जा सकता है कि एपिलेप्सी सर्जरी उन लोगों के लिए एक आशा की किरण है, जिनकी बीमारी दवाओं से नियंत्रित नहीं हो पा रही। सही मरीजों का चयन कर और उन्नत तकनीकों का उपयोग कर यह सर्जरी स्थायी राहत दिला सकती है और रोगियों के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है। हालांकि, सर्जरी से पहले मरीजों को अपने डॉक्टर से इसके संभावित लाभ और जोखिम पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए।

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