सही जानकारी और सतर्कता से ओरल कैंसर के खतरे को कर सकते हैं कम

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सही जानकारी और सतर्कता से ओरल कैंसर के खतरे को कर सकते हैं कम

सही जानकारी और सतर्कता से ओरल कैंसर के खतरे को कर सकते हैं कम

भिवाड़ी: भारत में ओरल कैंसर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। यह पुरुषों में सबसे आम और महिलाओं में चौथा सबसे आम कैंसर है। चिंताजनक बात यह है कि लगभग दो-तिहाई मामलों में इसका निदान तब होता है जब कैंसर काफी बढ़ चुका होता है। इसलिए इसके शुरुआती लक्षणों की पहचान और समय रहते इलाज बेहद ज़रूरी हो जाता है। ओरल कैंसर के कारणों, लक्षणों और बचाव के तरीकों को जानना सभी के लिए आवश्यक है, ताकि समय रहते निदान और उपचार सुनिश्चित किया जा सके।


ओरल कैंसर उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें मुंह के भीतर के किसी भी हिस्से में कैंसर विकसित होता है। इसमें गाल (बक्कल म्यूकोसा), मसूड़े, जीभ, मुंह का निचला भाग, ऊपरी व निचला जबड़ा, रेट्रोमोलर ट्राइगोन, हार्ड पैलेट और होंठ शामिल हैं। यह बीमारी भारत में पुरुषों में मृत्यु का सबसे आम कारण है। हर साल लगभग एक लाख नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत मरीजों की मृत्यु हो जाती है, जो इसकी गंभीरता को दर्शाता है।


मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी (हेड एंड नेक) विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर एवं यूनिट हेड डॉ. शिल्पी शर्मा ने बताया कि “ओरल कैंसर के प्रमुख कारणों में तंबाकू चबाना और धूम्रपान शामिल हैं। शराब का सेवन भी ओरल कैंसर का एक बड़ा कारक है। यदि तंबाकू और शराब का सेवन एक साथ किया जाए तो कैंसर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। हालांकि, यह जानना भी जरूरी है कि ओरल कैंसर उन लोगों को भी हो सकता है जो न तंबाकू का सेवन करते हैं और न ही शराब पीते हैं। ऐसे मामलों में तीखे दांतों द्वारा गाल या जीभ पर बार-बार लगने वाली चोटें भी कैंसर का कारण बन सकती हैं। इसके अलावा, खराब मौखिक स्वच्छता भी ओरल कैंसर से जुड़ी हुई है। ओरल कैंसर के सामान्य लक्षणों में मुंह के भीतर एक न भरने वाला घाव, बिना दर्द के कोई वृद्धि या खुरदरी सतह, आवाज में बदलाव, खाने में कठिनाई, जीभ की गति में रुकावट और अचानक दांतों का हिलना या गिरना शामिल हैं। गले में गांठें या सूजन भी ओरल कैंसर का संकेत हो सकती हैं।“


ओरल कैंसर का निदान एक साधारण बायोप्सी परीक्षण द्वारा किया जाता है। रोग के प्रसार का आकलन करने के लिए सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट भी आवश्यक होते हैं। इलाज की बात करें तो, ओरल कैंसर का प्राथमिक उपचार सर्जरी है। यदि प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का पता चल जाए तो सर्जरी सरल होती है और रोगी जल्दी स्वस्थ हो सकता है। वहीं, उन्नत मामलों में सर्जरी के साथ-साथ रेडिएशन थेरेपी और कुछ मामलों में कीमोथेरेपी की भी आवश्यकता होती है।


डॉ. शिल्पी ने आगे बताया कि “ओरल कैंसर को रोका जा सकता है। चूंकि तंबाकू और शराब इसके मुख्य कारण हैं, इनका सेवन न करने से इस बीमारी से बचाव संभव है। इसके अतिरिक्त, जो लोग तंबाकू या शराब का सेवन करते हैं, उन्हें नियमित रूप से विशेषज्ञ डॉक्टर से अपने मुंह की जांच करानी चाहिए ताकि किसी भी दंत चोट या पूर्व-कैंसर अवस्था की पहचान समय पर हो सके। पूर्व-कैंसर अवस्थाओं में ल्यूकोप्लाकिया (सफेद धब्बा), एरिथ्रोप्लाकिया (लाल धब्बा), ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस और इरोसिव लाइकेन प्लानस जैसी स्थितियां शामिल हैं, जो समय के साथ कैंसर में परिवर्तित हो सकती हैं।“


सकारात्मक बात यह है कि प्रारंभिक अवस्था में निदान होने वाले ओरल कैंसर का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है। हालांकि उन्नत अवस्था में भी इलाज संभव है, लेकिन सफलता की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है। आज चिकित्सा क्षेत्र में हुए महत्वपूर्ण विकास ने कैंसर रोगियों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में उल्लेखनीय प्रगति की है।


ओरल कैंसर को यदि समय रहते पहचाना और सही तरीके से इलाज किया जाए तो इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। रोकथाम और उपचार को प्राथमिकता देकर हम इस जानलेवा बीमारी के प्रभाव को कम कर सकते हैं और अनगिनत लोगों की जान बचा सकते हैं।